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देसंविवि, हरिद्वार : हरित क्रांति के दौरान कृषि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए रासायनिक खादों का अंधाधुंध इस्तेमाल किया गया, जिसके दुष्परिणामों को अब पांच दशक बाद साफ तौर पर देखा जा सकता है। कृषि में आयी इन्हीं विसंगतियों को दूर करने के लिए देसंविवि के ग्राम प्रबंधन विभाग ने परिसर में जैविक खेती का आदर्श मॉडल स्थापित किया है। इसके जरिए देश में हरित क्रांति को नए आयाम दिए जा रहे हैं।
ग्राम प्रबंधन विभाग जैविक खाद की खेती को भारत के प्रत्येक हिस्से तक पहुंचाने के लिए संकल्प के साथ प्रयासरत है। इसी क्रम में यहां प्रत्येक माह करीब एक हजार ग्रामीणों को बर्मी कम्पोस्ट खाद बनाने की विधि का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। जिला बुलंदशहर के गांव स्याना के रहने वाले राजेन्द्र त्यागी यहीं से जैविक खेती का प्रशिक्षण प्राप्त कर अपनी करीब ८० एकड़ जमीन में जैविक विधियों से खेती कर रहे हैं। उनका कहना है कि दस वर्ष पहले वह भी रासायनिक खेती किया करते थे। लेकिन घटती पैदावर व कम होती खेतों की उर्वरा शक्ति को देखते हुए उन्होंने जैविक खेती के विकल्पों को अजमाने के बारे में सोचा। इन दस सालों के दौरान परिणाम बेहद चौकाने वाले व सकारात्मक रहे। वह कहते हैं कि उनके खेतों में आज रसायनिक विधियों के मुकाबले डेढ़ गुना अधिक पैदावार होती है। साथ ही रसायनिक तरीकों से पैदा हुए अनाज व फलों के द्वारा शरीर पर पडऩे वाले दुष्प्रभावों को देखते हुए उनके खेतों में पैदा हुए अनाज व फलों को स्थानीय लोग बाजार भाव से अधिक मूल्य पर खरीदने को तैयार रहते हैं। ऐसे ही सैकड़ों ग्रामीण यहां से प्रशिक्षण प्राप्त कर जैविक खेती के जरिए नई मिशाल पेश कर रहे हैं। ग्राम प्रबंधन के विभागाध्यक्ष डॉ. केएस त्यागी का कहना है जैविक खेती के जरिए एक नई हरित क्रांति को अंजाम दिया जा सकता है। बढ़ते गंभीर शारीरिक रोगों को एक कारण खेती में अंधाधुंध रसायनों का इस्तेमाल करना है। जैविक विधियां खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के साथ स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है।
इस विधि में केंचुओं और घरों से निकले व्यर्थ पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है। यह बहुत ही सरल विधि है, इसके जरिए व्यर्थ कूड़े-कचड़े की क्यारी बना देते हैं और उसमें केंचुओं को छोड़ देते हैं, जिससे वे मिट्टी व कूड़े को डिकम्पोज कर देते हैं। ३५ से ४० दिनों मे यह खाद तैयार हो जाती है। पिछले कई सालों से किसानों को जैविक खेती का प्रशिक्षण दे रहे डीपी सिंह का कहना है कि शहरों के कचड़े को रिसाइक्लिंग करने की यह सबसे अच्छी विधि है। इसके इस्तेमाल से कृषि को रसायनों से प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है। साथ ही मंहगी खाद का विकल्प भी किसानों को मिल जाएगा, जिससे कृषि की ओर किसानों का झुकाव फिर से बढ़ेगा।
There is need for an educational institution which could mould its students into noble and enlightened human beings: selfless, warm-hearted, compassionate and kind.
~ Kulpita Pt. Shriram Sharma AcharyaFollow Us
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