गंगा की गोद, हिमालय की छाया में बसा देसंविवि, प्राकृतिक सुरम्यता और दिव्य वातावरण का एक ऐसा विरल संगम है, जहां शिक्षा के साथ विद्या के अनुपम प्रयोग चल रहे हैं। जहां युगऋषि के संकल्प के अनुरूप युग का नया इंसान गढ़ा जा रहा है। इस मौलिक विशेषता के कारण यहां के वातावरण में एक ऐसा प्राण प्रवाह लहलहा रहा है, जिसका प्रखर अहसास किए बिना आगंतुक रह नहीं सकता। यह मात्र शब्दों में वर्णित तथ्य नहीं, अनुभूतिजन्य सत्य है।
हरिद्वार-ऋषिकेश के कोलाहल भरे मार्ग से विश्वविद्यालय के सामने पहुंचते ही अद्भुत शांति के साम्राज्य का अहसास मिलता है। दोनों ओर हरे भरे वृक्ष मानों आगंतुकों का स्वागत करते प्रतीत होते हैं। मार्ग में सामने सुदूर गढ़वाल की पर्वत श्रृंखलाएं और पीछे शिवालिक की पहाडिय़ां हिमालय के आंचल में घिरे होने की दिव्यअनुभूति देती हैं। मार्ग में दोनों ओर अशोक के पेड़ जैसे पथिकों का सारा शोक हरते हुए सीधे महाकाल के मंदिर की पौधों एवं सुन्दर फुलवारियों से घिरा हुआ विश्वविद्यालय का हृदय केन्द है। ऊँ नम: शिवाय और महामृत्युज्जय मंत्र की ध्वनियों से गुंजायमान इसका प्रांगण दिव्य ऊर्जा से आप्लावित रहता है, जिसमें पल भर का ध्यान चित्त का असीम शांति देता है।
परिसर का मनोरम दृश्य आगंतुकों के चित्त को आल्हादित करता है। थोड़ा अंदर प्रविष्ट करने पर व्यक्ति यहां की हरियाली के संग सर्वधर्म समभाव की सुगंधी का भी अहसास कराता है। यहां विभिन्न धर्मों के नाम से बनी वाटिकाएं, दिव्य औषधियों एवं वृक्षों से अटी हैं। बुद्धवाटिका में पीपल, साखू और जामुन, तीर्थकरवाटिका के वट, देवदार, साल, कुरानीवाटिका में हीना, जैतून और खजूर, गुरु के बाग में टाली, पीपल और रीठे के पवित्र वृक्ष और धन्वंतरिवाटिका में ब्राह्मी, शतावरी, पुनर्नवा आदि वृक्ष वनस्पतियों में निहित दिव्य भावों का अहसास दिलाते हैं। आश्चर्य नहीं हर आगंतुक यहां के दिव्य वातावरण का स्पर्श पाकर कुछ ऐसी अनुभूति पाता है जो उसे यहां के किसी रूप में जुड़े रहने को सद्प्रेरित करता है।
हाईटेक तकनीक से लैस विश्वविद्यालय
आधुनिक शिक्षा के साथ वैदिक और वैज्ञानिक अध्यात्मवाद का अद्भुत समन्वय देवसंस्कृति विश्वविद्यालय की मौलिक विशेषता है। स्थापना के महज 10 वर्षोँ में यह देश-विदेश में तेजी से अपनी पहचान बना चुका है। यहां शिक्षा के साथ विद्या भी प्रदान की जाती है। विश्वविद्यालय का उद्देश्य छात्रों को भारतीय संस्कृति का संवाहक- राष्ट्रनिर्माता बनाना है।
वर्तमान स्थितियों को ध्यान में रखते हुये सारे विश्वविद्यालय को टेक्नोलॉजी के तारों के साथ जोड़ दिया गया है। परिसर के सभी विभागों में कम्प्यूटर और इंटरनेट की व्यवस्था की गई है, जिससे कम्प्यूटर के विद्यार्थियों के अलाव अन्य विभागों के विद्यार्थी भी कम्प्यूटर की दुनिया की सैर कर सके और नवीनतम जानकारियों से रुबरु हो सकें।
यहां की लाइबे्ररी पूरी तरह से टेक्नॉलाजी से लैस है। वार कोडिंग होने के कारण पुस्तकें आसानी से इश्यू एवं डिपोजिट होती हैं। पुस्तकों का एक पूरा डाटा बेस तैयार किया गया है। ई-लाइब्रेरी में सभी विषयों की उपयोगी सामग्री राइट कर रखी गई हंै, जिससे आवश्यक सामग्री आसानी से उपलब्ध से प्राप्त हो सके। पूरा परिसर कम्प्यूटर नेटवर्क द्वारा आपस में जुड़ा है। कम्प्यूटर एवं हार्डवेयर से संबंधित समस्या की एंट्री के लिए एक साफ्टवेयर बनाया गया है जिससे परेशानी का निराकरण जल्दी हो जाता है। वैदिक विज्ञान के साथ कम्पयूटर के समन्वय को लेकर भी विश्वविद्यालय अपनी उड़ान भर रहा है और आने वाले समय में अध्यात्म और तकनीकी का यह गठजोड़ सुखद आश्चर्य को जन्म देगा।
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