भारत में वैदिक काल से ही दुनिया के लिए सबसे बड़ा उपहार एवं भारतीय संस्कृति में केंद्रीय विषय यज्ञ रहा है। यह न केवल जीवन जीने की एक शैली के रूप में शामिल है बल्कि इसका व्यापक अनुप्रयोग मानवीय-स्वास्थ्य,सामाजिक-कल्याण,कृषि-लाभ, पर्यावरण-शुद्धि व आध्यात्मिक प्रभाव सहित विभिन्न क्षेत्रों पर भी है। विज्ञान के आगे बढ़ने के प्रयास में यज्ञ-अनुसंधान के विभिन्न शोध प्रयासों को एकीकृत करने हेतु एक आधुनिक यज्ञ अनुसंधान केन्द्र की आवश्यकता थी। इसी को ध्यान में रखते हुए श्रद्धेय कुलाधिपति डॉक्टर प्रणव पण्ड्या के मार्गदर्शन एवं आदरणीय प्रतिकुलपति डॉ चिन्मय पंड्या के करकमलों से देसंविवि में याज्ञवल्क्य यज्ञ अनुसंधान केन्द्र का उद्घाटन किया गया।
परम पूज्य गुरुदेव ने १९७९ में ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान में इस विधा को यज्ञोपैथी के रूप में पुनर्जीवित किया। श्रद्धेय कुलाधिपति डॉक्टर साहब ने इस पर गहन अनुसंधान की आधारशिला रखी और यह यात्रा आगे चलते हुए देव संस्कृति विश्वविद्यालय पहुंची। जहाँ विश्वविद्यालय की स्थापना से लेकर आज तक अनवरत यज्ञ विज्ञान पर शोध किया जा रहा है। इसी क्रम में विश्वविद्यालय में अभी तक ७ पीएचडी यज्ञ विज्ञान के विविध आयाम पर हुई है। अनुसंधान के कार्य को सूत्रबद्ध करते हुए २०१८ में याज्ञवल्क्य यज्ञ अनुसंधान की स्थापना हुई। इस अनुसंधान केंद्र को अत्यधिक आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित किया गया है जिसमे माइक्रोबायोलॉजी, फायटोकेमिकल, एन्वॉयरन्मेंटल, प्लांट फिजियोलॉजी, ह्यूमन एलेक्ट्रोफीसिओलॉजी की लैब बनाई गई है तथा बहुत ही सुनियोजित ढंग से अनुसंधान की कार्य योजना बनाई गई है जिसे सात हिस्सों में बांटा गया है।
प्रथम यज्ञीय धूम्र का विभिन्न रोगकारक बैक्टीरिया पर प्रभाव का अनुसन्धान। इसमें यज्ञ में प्रयुक्त विभिन्न समिधा एवं औषधियों की यज्ञीय धूम्र का हवा, पानी, और मिट्टी के रोगकारक बैक्टीरिया पर क्या प्रभाव पड़ता है इसके जांच हेतु अनुसंधान केंद्र में माइक्रोबायोलॉजी अनुसन्धान हेतु मशीन लगाई गई है। द्वितीय औषधियों की यज्ञीय धूम्र में सन्निहित तत्वों का अनुसंधान।इस हेतु एक बंद यज्ञ कक्ष का निर्माण किया गया है। जिसमे एयर सैम्पलर मशीन द्वारा यज्ञीय धूम्र को रसायन में अवशोषित किया जाता है और उसमें सन्निहित तत्वों का स्पेक्ट्रोफोटोमीटर द्वारा मापन किया जाता है। तृतीय यज्ञीय धूम्र का विभिन्न कोष पर प्रभाव का अनुसन्धान। इस हेतु देश विदेश की लेबोरेटरी में जहां अलग अलग कैंसर तथा अन्य रोग के कोषों का आधुनिक तकनीक द्वारा संवर्धन किया जाता है, वहां यज्ञ अनुसंधान केंद्र द्वारा यज्ञीय धूम्र को भेजा जाएगा। इस हेतु एयर सैम्पलर, रोटरी-एवापोरेटर, लायोफिलाइजर इत्यादि मशीनों के उपयोग की व्यवस्था अनुसंधान केंद्र में है।
चतुर्थ रोगप्रतिकारक औषधियों से यज्ञ करने से रोगी पर होने वाले प्रभाव का अनुसन्धान। पिछले कुछ दशकों में ब्रह्मवर्चस शोध संसथान में ४०० से ज्यादा जड़ीबूटियों का चयन किया गया और ८० से ज्यादा रोगनिवारक, स्वास्थ्यवर्धक हवन सामग्रियो के निर्माण की विधि का अनुसंधान किया गया जिसके आधार पर सन् २००३ से देव संस्कृति विश्वविद्यालय में आयुर्वेद विभाग द्वारा औषधीय हवन सामग्री का प्रायोगिक निर्माण कर रोगियों की चिकित्सा की जा रही हैं। मुख्य रूप से यज्ञोपैथी का डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, वात रोग, मानसिक रोग, थायराइड तथा कैंसर के रोगियों में होने वाले प्रभाव को पैथोलॉजी टेस्ट द्वारा मापा जाएगा। पंचम यज्ञ का शारीरिक एवं मानसिक स्तर पर होने वाले प्रभाव का अनुसन्धान। यज्ञ के दौरान एवं नियमित यज्ञ करने से शारीरिक एवं मानसिक स्तर पर प्रभाव का अध्ययन करना इस अनुसंधान का एक मुख्य उद्देश्य है। छटा यज्ञीय धूम्र एवं यज्ञ का प्रदूषित हवा, पानी, एवं मिट्टी पर प्रभाव का अध्ययन। वर्तमान परिपेक्ष्य में पर्यावरण शोधन में यज्ञ की क्या भूमिका हो सकती है इसका भी अनुसंधान किया जाएगा। सप्तम यज्ञ का वनस्पति एवं कृषि पर प्रभाव का अनुसन्धान। यज्ञ से वनस्पति के पोषक तत्त्व एवं रोग नाशक तत्वों में क्या बदलाव आता है तथा प्रदूषित पोषण विहीन मिट्टी में क्या बदलाव आता है, इसके मापन की सुविधा भी अनुसंधान केंद्र में रखी गई है। जिसका मापन बायोकैमिकल टेस्ट तथा स्पेक्ट्रोफोटोमीटर द्वारा किया जाएगा।।
इन यज्ञ अनुसंधानों को इंटरडिसिप्लिनरी जर्नल ऑफ यज्ञ रिसर्च (आई.जे.वाय.आर.) नामक शोध पत्रिका के ऑनलाइन प्रकाशन द्वारा पढ़ा जा सकता है। यज्ञ का वृहद विज्ञान अनुसंधान के सारे आयामों को प्रभावित करता है। इसलिए चिकित्सा विज्ञान (माइक्रोबायोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री, मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, ड्रग डेवलपमेंट, थेराप्यूटिक्स, फार्माकोलॉजी, साइकोलॉजी इत्यादि), पर्यावरण विज्ञान, कृषि विज्ञान, पुरातन विज्ञान, इतिहासवेत्ता इत्यादि के समन्वित विशेषज्ञों से यह अनुसंधान होगा और सभी तरह के विज्ञान विद इस अनुसंधान में जुटेंगे। जैसे- जैसे संसाधन बढ़ते जाएंगे, गहनता से अनुसन्धान होता जाएगा। इस अनुसंधान केंद्र में सभी इच्छुक वैज्ञानिक पृष्ठभूमि वाले परिजन अपना योगदान दे सकते हैं। साथ ही स्नातक-परास्नातक विद्यार्थी भी शोध निबंध, प्रोजेक्ट इत्यादि द्वारा भी इसमें अपनी आहुति दे सकते हैं। इस हेतु यज्ञ अनुसंधान केंद्र (9719253335) से संपर्क कर सकते हैं।